कबीर [kabir]

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 जीवन परिचय










जन्म:- कबीर जी का जन्म कशी में 1398 ई॰ में हुआ था | मन जाता है
की वे स्वामी रामानंद के शिष्य थे | कबीर ने अपनी रचनाओ में अपने को जुहाला तथा
कशी का निवासी कहा है | जीवन के अंतिम समय में वे मांगहर चले गये और वही अपना सरीर
त्यागा | कबीर ने विधिवत् शिक्षा नहीं पाई थी | उन्होंने स्वाम कहा है की “मसि काद
छुओनहीं, कमल गहि नहीं हाथ” | वे शुरू से ही संतो और फकीरों के संगती में रहे थे |
अतः उनके पास उच्चकोटि का ज्ञान और मौलिक चिंतन की विलक्षण प्रतिभा थी |





          निर्गुण भक्त कवियों की ज्ञानमार्गी शाखा में कबीर का स्थान
सर्वोच्च है | वे अत्यंत निर्भय था उदार संत थे | उनके काव्य में धर्म के बाह्य
अबंडरो का विरोध है | तथा राम-रहीम की एकता की स्थापना का प्रयास भी है | उन्होंने
जातिगत और धार्मिक भेदभाव का बार-बार खंदन किया है | वे हर तरह के भेदभाव से मुक्त
मनुष्य की मनुष्यता को जगाने की प्रयास करते है |





          कबीर के काव्य में  गुरु-भक्ति, इश्वर-प्रेम, ज्ञान व वैराग्य,
सत्संग और साधू-महिमा, आत्मबोध तथा जगतबोध की अभिव्यक्ति है | उनकी कविता अनुभव की
ठोसधरातल पर टिकी होने के कारण से विश्वसनीय है और प्रमाणिक भी है |





निधन:- इनकी मृत्यु संवत 1575 में मानी जाती है | 









रचनाएँ:- कबीर की रचनाएँ मुख्यतः- ‘कबीर ग्रन्थ वाली’ में संगृहीत हैं |
परन्तु कबीर पंथ में ‘बीजक’ का विशेष महत्व है | उनकी कुछ रचनाएँ ‘गुरुग्रंथ साहेब’
में भी संकलित है | बीजक के तीन भाग है- साखी, सदब और रमैनी |





भाषा कौशल:- कबीर की भाषा जन भाषा है |  उसमे भावो की गहराई की अभिव्यक्ति की क्षमता है
| जस्ब वे रुढियों पर प्रहार करते है तो उनकी भाषा तीर से भी आधिक चुभन पैदा करती
है; यथा--





“ मस्जिद भितार मुल्ला पुकारै, क्या साहब तेरा बहरा है |


चिउँटी के पग नेवर बाजै सो भी सुनता है | ”







इन्होने अलंकारो का सहज
प्रयो किया है | वे शुष्क तथ्यों को उपमानों में लपेटकर पेश करते है | जिसमे उनके
आकर्षण में अपार वृद्धि हो जाती है | इन्होने मारू, मेरु, ललित, धनाश्री आदि का
प्रयोग किया है | डॉ॰ हजरिपप्रसाद द्विवेदी ने कबीर को ‘वाणी का डिक्टेटर’ कहा है
|