रंगों का त्योहार: होली [Holi]

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rango ka tyohar holi





भूमिका:- हमारे मशीनी,निराश जीवन में रस घोलने और उसे रंगीन बनाने
आते है- त्योहार |


उन सभी त्यौहारों में
सबसे रंगीन-सजील पर्व है- होली | इन दिनपुराने गिले-शिकवे और शत्रुता भूलकर गले
मिलते है और एक ही रंग में रंग जाते है |





विस्तार--


कब और क्योंमनाया जाता है- फाल्गुन
मास की पूर्णिमा रात
को ‘होलिका दहन’ से
यह पर्व प्रारंभ होता है | पौराणिक
कथा के अनुसार इस पर्व का सम्बन्ध भक्त प्रह्लाद से है | प्रह्लाद भगवन विष्णु का
परम भक्त था और उसके पिता हिरणकश्यप उनका परम विरोधी थे | पिता ने अपने पुत्र को
मार डालने के लिए अपनी बहन होलिका की सहायता ली | होलिका को यह वरदान प्राप था  अग्नि उसके शरीर को जला नही सकती | वह अपने भाई
के कहने पर प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर लकड़ियो के ढेर पर बैठ गयी | अग्नि प्रज्वलित
क्र दी गई | भगवन की लीला-होलिका जल गयी और प्रह्लाद बाख गया | इस प्रकार अन्याय
पर न्याय, असत्य पर सत्य की विजय हुई |





rango ka tyohar holi





कैसे मनाया जाता है- प्रतिवर्ष  फाल्गुन
की पूर्णिमा पर होलिका दहन किया जाता है | फाल्गुन तक फसल पाक कर तैयार हो जाती है
| किसान अपनी लहलाती फसल देखकर ख़ुशी से झूम उठते है | मौसम भी सुहाना होता है |
सर्दी जा चुकी होती है – गर्मी अभी आई नही होती | ऐसे में सब ख़ुशी से नाचते-गाते
हैं | गाँव में तो अभी भी ‘फाग के गीत’ रात-रात में गए जाते हैं | होली-दहन के
दुसरे दिन होती है ­–‘धुलेंडी’ | सब एक दुसरे को गुलाल डालते हैं, गले मिलते है |
आमिर-गरीब, छोटे-बड़े का भेद भाव भूलकर सब एक-दुसरे पर रंग डालते हैं | बच्चो का
उत्साह तो दखते ही बनता हैं | लोग तोलियाँ बना-बनाकर नाचते-गाते परिचित-अपरिचित
सभी को रंगों से सरोबर कर देते है | ‘बुरा ना मनो होली है’, ‘होली है भाई होली है’
के जोश भरे उद्गारों से वातावरण गुँज उठता है | ढोल-मंगिरे के साथ भंगड़ा-गिद्दा
होता है | लोग एक दुसरे के घर जाकर बधाई देते है | ठंडाई और गुजिया इस दिन के
विशेष व्यंजन होते है | संध्या को जगह-जगह 
‘होली-मिलन’ समारो किए जाते है  |





इस पावन-पर्व को भी कुछ
लोग अपवित्र बना देते हैं | कीचड़, पेंट और रासायनिक रंग लगते हैं | शराब पीकर गाली-गलोच
करते है | इन बुरइयो को समाप्त करना अवश्यक हैं |





उपसंहार- होली प्रेम और सदभाव का पर्व है | यह परस्पर मैत्री और
सदभाव को बढावा है | आपसी द्वेस-दुश्मनी भूलकर प्रेम और भाई-चारे को बढ़ने का अवसर
देता है | एकता के सूत्र में बंधने वाले इस पवित्र पर्व का सन्देश हैं- ‘प्रेम से
बढकर और कुछ नहीं ,और मित्रता ही हमारे भारत की पहचान है’ |








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