रांगेय राघव [Rangeya Raghav]

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जीवन परिचय







जन्म:- रांगेय राघव का जन्म सन् 1923 में आगरा में हुआ था | उनका
मूल नाम तिरुमल्लै नबाकम वीर राघव आचार्य था, लेकिन उन्हने रांगेय राघव नाम से
सहित्य-रचना की है | उनके पूर्वज दक्षिण आरकाट से जयपुर नरेश के आमंत्रण पर जयपुर
आए थे, जो बाद में आगरा में बस गए | उनकी शिक्षा-दीक्षा वहीं हुई | उन्होंने आगरा
विश्वविधालय से हिन्दी में एम.ए. तथा पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की |





निधन :- 39 वर्ष की अल्पायु में ही उनका देहांत हो गया |     





रचनाएँ:- रंगेय राघव ने सहित्य की विविध विधाओं में रचना की है जिसमे
कहानी, उपन्यास, कविता तथा आलोचना प्रमुख हैं | उनकी प्रमुख कहानी हैं- ‘रामराज्य
का वैभव’, ‘समुद्र के फेन’, ‘अधूरी मूरत’, ‘जीवन के दाने’, ‘देवदासी’, ‘अंगारे न
बुझे’, ‘ऐयाश मुर्दे’, ‘इंशान पैदा हुआ’ | उनके उल्लेखनीय उपन्यास है- ‘विषाद-मठ’,
‘मुर्दों का टीला’, ‘सीधा-साधा रास्ता’, ‘घरौंदा’, ‘अँधेरे का जुगनू’, ‘बोलते
खंडहर’ और ‘कब तक पुकारूँ’ | सन् 1961 में राजस्थान सहित्य अकादमी ने उनकी
सहित्य-सेवा के लिए उन्हें प्रुस्कृत किया गया | उनकी रचनाओ का संग्रह दस खंडो में
‘रांगेय राघव ग्रंथावली में नाम से प्रकाशित हुआ है’ |







शिल्पगत विशेषतएँ:- रांगेय राघव ने 1936 ई. से ही कहानियाँ लिखनी आरंभ कर दी थी
| उन्होंने अस्सी से ज्यादा कहानियाँ लिखी है | अपने कथा सहित्य में उन्होंने जीवन
के विविध आयामों को रेखांकित किया है | उनकी कहानियाँ में समाज के शोषित-पीड़ित
मानव जीवन के यथार्थ का मार्मिक चित्रण मिलता है | उनकी कहानियाँ शेषण से मुक्त का
रास्ता भी दिखाते हैं | सरल तथा प्रवाहपूर्ण भाषा उनकी कहानियों की विशेषता है | इन्होने
खड़ी बोलीमें सशक्त अभिव्यक्ति की है | कहानी में संवादों का प्रयोग कथा आगे बढ़ाने
के लिए किया गया है |